केंद्र सरकार ने कम से कम 5 सरकारी बैंकों में से प्रत्येक में अपनी 20 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। यह कदम सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) के न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग को पूरा करने के लिए उठाया जा रहा है। इस योजना से सरकारी बैंकों में निजी निवेश बढ़ने की उम्मीद है, जिससे बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है।
कौन-कौन से बैंक होंगे शामिल?
जिन पांच बैंकों में सरकार अपनी हिस्सेदारी घटाएगी, वे हैं:
- बैंक ऑफ महाराष्ट्र: सरकार की हिस्सेदारी 86.46%
- इंडियन ओवरसीज बैंक: सरकार की हिस्सेदारी 96.38%
- यूको बैंक: सरकार की हिस्सेदारी 95.39%
- सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया: सरकार की हिस्सेदारी 93.08%
- पंजाब एंड सिंध बैंक: सरकार की हिस्सेदारी 98.25%
हिस्सेदारी बिक्री की प्रक्रिया
सरकार ऑफर-फॉर-सेल (OFS) और क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट (QIP) जैसे दो रास्तों के जरिए अपनी हिस्सेदारी बेचेगी। इस प्रक्रिया से सरकार को लगभग ₹50,000 करोड़ जुटाने की उम्मीद है, जिसे अन्य विकास परियोजनाओं में लगाया जाएगा।
ग्राहकों पर क्या होगा असर?
सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बिक्री से ग्राहकों पर कई तरह के असर पड़ सकते हैं। एक ओर, निजी निवेश से बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार हो सकता है, जिससे ग्राहकों को बेहतर सेवाएं मिल सकती हैं। दूसरी ओर, निजीकरण से ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की सेवाओं पर असर पड़ सकता है, जहां सरकारी बैंकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी बैंकों में हिस्सेदारी बिक्री एक सकारात्मक कदम हो सकता है। CARE Ratings के वरिष्ठ निदेशक संजय अग्रवाल ने कहा कि “यह फैसला सरकार और बैंकों दोनों के लिए लाभदायक साबित हो सकता है।”